श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मथुरा में हुआ था।

बचपन में ही कान्हा जी को माखन खाने का बहुत शौक था। और जैसे-जैसे वह बड़े होते गए उनकी माखन खाने का शौक और भी बढ़ता गया कान्हा जी अपने ही घर में माखन चोरी करके खाते थे।

वह मिट्टी की एक छोटे बर्तन में हांडी में डालकर माखन को लटका देती थी और श्री कृष्णा उसे हांडी को फोड़ के उसमें से माखन खा लेते थे।

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वृंदावन में लोग गोवर्धन नाम के पर्वत की पूजा करने लगे थे सब लोगों ने श्री कृष्ण के कहने पर उसे पर्वत की पूजा करना शुरू कर दिया था।

इंद्रदेव की पूजा नहीं करते थे इस बात पर देवराज इन बहुत ही क्रोधित हो गए उनके अंदर यह आया कि यह लोग मेरी पूजा ना करके इस पर्वत की पूजा कैसे कर सकते हैं और इस बात से वह क्रोधित हो गए।

जब देवराज इंद्र क्रोधित होकर यह सब देखें तो उन्होंने फैसला किया कि इस अपराध का दंड तो इन लोगों को देना ही पड़ेगा और ब्रिज गांव के ऊपर बहुत ही घनघोर बादल छाई उसे वक्त ब्रिज गांव की दशा खराब होने लगी।

भगवान श्री कृष्ण ने सबको संभाला और परिस्थिति को पूरी तरीके से जानने के बाद उन्होंने गांव वालों के साथ था के लिए एक उपाय सोचा उन्होंने सभी गांव वालों को गोवर्धन पर्वत के पास ले गए

और उसे पर्वत को अपने एक उंगली पर उठा लिया। और वह पर पूरे गांव के लिए एक छतरी का काम करने लगा पूरा गांव उसे गोवर्धन पर्वत के नीचे जाकर छुप गया।

जब उन्होंने अपनी उंगली पर पर्वत को उठाया तो सारे गांव वाले और जानवर उसे पर्वत के नीचे आने लगे और इस प्रकार श्री कृष्ण ने सब गांव वालों की रक्षा करें

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