Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi: रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को कांशी (वाराणसी) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी बाई था लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था और प्यार से सब उन्हें मनु बुलाते थे रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा की धनी थी जिसे इनके पिता ने शुरुआत में ही भांप लिया था
उस दौर में जब लोग अपनी बेटियों की शिक्षा पर ज्यादा महत्व नहीं देते थे तब उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई को घर पर ही शिक्षा ग्रहण करवाई “खूब लड़ी मर्दानी झांसी वाली रानी का जीवन परिचय“। Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi
तो आइये इस लेख के माध्यम से जानते है , Rani Lakshmi Bai Biography, रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में , रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी?
Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi
Contents
रानी लक्ष्मी बाई की जीवनी | Rani Lakshmi bai Biography
रानी लक्ष्मी बाई वीर योद्धा की तरह निशानेबाजी। घेराबंदी, युद्ध की शिक्षा, घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा आदि की भी ट्रेनिंग दिलवाई घुड़सवारी और अस्त्र शस्त्र चलाना रानी लक्ष्मी बाई के बचपन में ही प्रिय खेल थे रानी लक्ष्मीबाई बेहद कम उम्र में ही शस्त्र विद्या में निपुण हो गई थी बाद में एक साहसी योद्धा की तरह एक वीर रानी बनी और लोगों के सामने अपनी वीरता की मिसाल पेश की।
अपने पति की मृत्यु के बाद, झाँसी की राजा, रानी लक्ष्मी बाई ने नेतृत्व की बागडोर संभाली और ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय विद्रोह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने अपने सैनिकों को एकत्र किया, उन्हें युद्ध में प्रशिक्षित किया, और स्वयं युद्ध में उनका नेतृत्व किया। भारी बाधाओं का सामना करने के बावजूद, उसने कभी हार नहीं मानी और अपने कारण के लिए तब तक लड़ती रही जब तक कि वह 29 साल की छोटी उम्र में युद्ध में नहीं मारी गई।
नाम | मणिकर्णिका विवाह के बाद लक्ष्मी बाई नेवलक |
जन्म | 1828 |
मृत्यु | 1818 |
पिता का नाम | मोरोपंत तांबे |
माता का नाम | भागीरथी बाई |
पति | महाराज गंगाधर राव नेवलकर |
संतान | दामोदर राव |
दत्तक पुत्र | आनंदराव |
घराना | मराठा साम्राज्य |
उल्लेखनीय काम | 1857 की क्रांति |
लक्ष्मी बाई की शादी | Marriage of Lakshmi Bai
रानी लक्ष्मी बाई, जिन्हें झाँसी की रानी के रूप में भी जाना जाता है, का विवाह 12 मई, 1842 को झाँसी के महाराजा राजा गंगाधर राव नयालकर से हुआ था। रानी लक्ष्मी बाई की उम्र केवल 14 साल थी जब उनका विवाह हुआ था और उनके पति की उम्र उनसे काफी अधिक थी। हालाँकि, इस जोड़े का विवाह सुखी और प्रेमपूर्ण था, और राजा गंगाधर राव अपनी युवा दुल्हन से बहुत प्यार करते थे।
दुर्भाग्य से, युगल की खुशी अल्पकालिक थी क्योंकि राजा गंगाधर राव की मृत्यु 1853 में सिंहासन के उत्तराधिकारी के बिना हुई थी। इसके कारण अंग्रेजों ने झाँसी पर कब्जा कर लिया, जो अंततः 1857 में झाँसी की प्रसिद्ध लड़ाई का कारण बना, जहाँ रानी लक्ष्मी बाई ने अपने राज्य की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
लक्ष्मी बाई के संघर्ष की शुरुआत
उनका संघर्ष मुख्य रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की विलय नीति के कारण उत्पन्न हुआ था। 7 मार्च 1854 में ब्रिटिश सरकार ने सरकारी बजट पेश किया जिसके अनुसार झांसी ब्रिटिश साम्राज्य मैं मिलाने का आदेश दिया गया, लक्ष्मीबई को ब्रिटिश अफसर एलिस द्वारा जब यह आदेश मिला उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया।
इसके बाद झांसी विद्रोह का केंद्र बिंदु बन गया लक्ष्मीबाई ने कुछ और राज्यों से मदद लेकर एक सेना तैयार की जिसमें मैं केवल पुरुष बल्कि महिलाएं भी शामिल हुई उन सब को युद्ध में लड़ने का प्रशिक्षण दिया रानी लक्ष्मीबाई की सेना में बहुत महान महारथी शामिल थे, गुलाम खान, दोस्त खान, सुंदर – मंदिर, काशीबाई, खुदा बख्श, लाला भाऊ, मोतीबाई, दीवान जवाहर सिंह, तात्या टोपे, रघुनाथ आदि उनकी सेना में शामिल थे।
10 मई1857 को मेरठ में भारत का विद्रोह सबसे पहले शुरू हुआ जिसका एक कारण यह भी था कि जो बंदूकों की नई गोलिया थी उस पर सूअर और गौ मांस की परत चढ़ाई गई थी इसे हिंदुओं को धार्मिक तौर पर ठेस लगी इस कारण है यह विद्रोह पूरे भारत देश में फैल गया ब्रिटिश सरकार इस विद्रोह को तेज घबरा गई और उनके लिए इसको दबाना ज्यादा जरूरी हो गया था
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तत्कालीन शासक के दत्तक पुत्र दामोदर राव की आपत्तियों के बावजूद, 1853 में, हड़प नीति के सिद्धांत के तहत, ईस्ट इंडिया कंपनी ने जैतपुर राज्य और उसके आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। रानी लक्ष्मी बाई, जिनका विवाह झाँसी के महाराजा से हुआ था, जैतपुर के शासक की मित्र थीं और कंपनी की अधिग्रहण नीति से नाराज थीं।
1857 में, भारतीय विद्रोह, जिसे भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ टूट गया। रानी लक्ष्मी बाई ने इस विद्रोह में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में अपने सैनिकों का नेतृत्व किया। वह बहादुरी से लड़ीं लेकिन अंततः जून 1858 में ग्वालियर की लड़ाई के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।
अंग्रेजों के साथ रानी लक्ष्मी बाई का संघर्ष अपने राज्य की स्वतंत्रता और अपने लोगों के अधिकारों को बनाए रखने के उनके दृढ़ संकल्प से प्रेरित था। वह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध का प्रतीक और कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
कालपी की लड़ाई
युद्ध में हार जाने के कारण लक्ष्मीबाई 24 घंटों में कई किलोमीटर का सफर तय किया और अपने दल के साथ कालपी राज्य पहुंची बहुत समय तक वह कालपी में शरण ली जहां उन्होंने तात्या टोपे के साथ शरण ली थी बाकी पेशवा ने परिस्थिति को समझकर उन्हें शरण दी और अपना सैनिक बल भी उनको सौंपा।
22 मई 1857 को सरोज ने कालपी पर भी आक्रमण कर दिया था उस वक्त रानी लक्ष्मीबाई ने बीता और रणनीति पूर्वक उन्हें युद्ध में हरा हरा और अंग्रेजों को वहां से भागना पड़ा कुछ समय बाद यूरोज ने फिर से हमला किया इस पार रानी लक्ष्मीबाई हार गई।
युद्ध में हार के बाद पेशवा राव साहब तात्या टोपे बंद के नवाब और भी बहुत सारे योद्धा गोपालपुरा में इकट्ठे हुए लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का तरीका बताया इससे वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते थे और लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे मैं इस योजना को आगे बढ़ाया और विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढ़ाई करती वहां उन्होंने ग्वालियर के राजा को हरा दिया ग्वालियर को अपने अधीन कर लिया।
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लक्ष्मी बाई की मृत्यु | Death of Lakshmi Bai
रानी लक्ष्मी बाई, जिन्हें “झाँसी की रानी” के रूप में भी जाना जाता है, की मृत्यु 18 जून 1858 को 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान हुई थी। उसके घोड़े से। घायल होने के बावजूद, वह एक और घोड़े पर चढ़ी और तब तक लड़ती रही जब तक कि अंत में उसने दम तोड़ दिया।
उनकी मृत्यु भारतीय विद्रोह के लिए एक महत्वपूर्ण क्षति थी, क्योंकि वह एक निडर और प्रेरक नेता थीं, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ लड़ाई में एक प्रमुख व्यक्ति थीं।रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति प्राप्त की उस समय रानी लक्ष्मीबाई के एक विश्वासपात्र सैनिक उनके पास आए और उन्हें गंगादास मठ में ले गए क्योंकि लक्ष्मीबाई की आखिरी इच्छा यही थी कि कोई भी अंग्रेज सैनिक उनके मृत शरीर को हाथ तक ना लगाएं
FAQ : रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में | Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi
Q 1.महारानी लक्ष्मीबाई का निधन कब हुआ ? (How Did Rani Lakshmi Bai Died) |
उनकी मृत्यु 18 जून 18 58 को |
Q 2.महारानी लक्ष्मी बाई का जन्म कब हुआ ? |
19 नवंबर 1828 को काशी वाराणसी |
Q 3.सबसे पहले भारत में विद्रोह कब प्रारंभ हुआ ? |
10 मई अट्ठारह सौ सत्तावन मेरठ में |
Q 4. लक्ष्मीबाई का उत्तराधिकारी कौन था ? |
दामोदर राव |
निष्कर्ष : रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में | Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi
रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में (Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi) : अपने शौर्य से उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे रानी लक्ष्मीबाई वास्तविक अर्थ में आदर्श वीरांगना थी रानी लक्ष्मी बाई को प्रतिरोध और बहादुरी के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है, और उनकी विरासत दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करती है। उनका जीवन एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी, हमें अपने विश्वासों में दृढ़ रहना चाहिए और जो सही है उसके लिए लड़ना चाहिए।
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लेख के जरिये रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय हिंदी में (Rani Lakshmi Bai Biography in Hindi) के बारे में कुछ बाते बताई गयी है लक्ष्मी बाई के बारे में अधिक जानने के लिए कमेंट बॉक्स में कमेटा करके बताइये और लेख कैसा लगा ये भी बताये।
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